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भारत का सबसे अनोखा रेलवे पुल जिसके तेज बहते पानी के ऊपर चलती है गाड़ियां और बीच में दौड़ती है ट्रेनें, कार और ट्रेन की सवारियों को दिखता है बेहद खूबसूरत नजारा

देश का सबसे लंबा ब्रिज असम में ब्रह्मापुत्र नही पर डिब्रूगढ़ में बोगीबील ब्रिज है। जो कि देश का सबसे लंबा रेल कम सड़क पुल और एशिया का दूसरा सबसे लंबा रेल सड़क पुल है। ये पुल ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी और दक्षिणी तट पर धेमाजी और डिब्रूगढ़ को जोड़ता है। इस पुल के बनने से  ऊपरी असम और अरुणाचल प्रदेश के  लोगों को आवागमन में सहूलियत मिली है।
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Bogibeel Bridge

देश का सबसे लंबा ब्रिज असम में ब्रह्मापुत्र नदी  पर डिब्रूगढ़ में बोगीबील ब्रिज है। जो कि देश का सबसे लंबा रेल कम सड़क पुल और एशिया का दूसरा सबसे लंबा रेल सड़क पुल है। ये पुल ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी और दक्षिणी तट पर धेमाजी और डिब्रूगढ़ को जोड़ता है। इस पुल के बनने से  ऊपरी असम और अरुणाचल प्रदेश के  लोगों को आवागमन में सहूलियत मिली है।  ब्रह्मपुत्र नदी पर बना बोगीबिल ब्रिज  4.9 km  लंबा है। 

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डबल डेकर होने से साथ बहुत मजबूत है ये पुल

जानने की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि इस पुल मे रिपीट नहीं लगाया गया बल्कि इसकी जगह लोहे को वेल्ड किया हैं। जिसकी वजह से  इस पुल का वजन 20% तक कम हो गया और इसकी लागत भी कम हो गई थी। इस डबल-डेकर पुल से ट्रेन और गाड़ियां दोनों ही आराम से गुजर सकती है। ऊपर की तरफ़ तीन लेन की सड़क बनाई गई है और इसके नीचे दो ट्रैक बिछाए गए हैं। ये पुल इतना ज्यादा मजबूत है कि इस पर से मिलिट्री टैंक भी आराम से गुजर सकते है। 

सफ़र का समय हुआ कम 

बोगीविल पुल असम के डिब्रूगढ़ से अरुणाचल के धेमाजी जिले को जोड़ता हैं। इस पुल के निमार्ण से असम से अरुणाचल प्रदेश का सफ़र  4 घंटे कम हो गया हैं। साथ ही दिल्ली से डिब्रूगढ़ की रेल यात्रा का समय भी तीन घंटे घट गया है। जहां पहले ये दूरी तय करने के लिए 37 घंटे लगते थे पर अब 34 घंटे ही लगते है।

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नदी की चौड़ाई को करना पड़ा था कम

इस पुल के निमार्ण कार्य में इंजीनियरों को कई तरह की कठनाइयो और चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। ब्रह्मपुत्र नदी की चौड़ाई  बोगीबिल में 10.3 किलोमीटर थी, लेकिन पुल के निमार्ण के लिए इंजीनियरों ने कई तकनीको का प्रयोग कर नदी की चौड़ाई को कम कर दिया था।

इसके बाद इस पर करीब 5 किलोमीटर लंबा रेल/रोड ब्रिज बनाया गया। नदी में पानी के दवाब ज्यादा होता है,जिससे मिट्टी का कटाव शुरू हो जाता है और कहीं भी टापू बन जाते है ऐसे में काम करना या फिर लोकेशन बदलना ये सब बहुत मुश्किल भरा काम हो जाता है। लेकिन इन परेशानीयो से निपटकर रेल्वे ने पहली बार स्टील गर्डर का प्रयोग कर पुल बनाने का ये कारनाम कर किया।