उत्तर प्रदेश में मई-जून के दौरान भीषण गर्मी और लू के बाद मानसून के आगमन की जो उम्मीदें थीं। वह जुलाई के शुरुआती दिनों में तो कुछ हद तक पूरी हुईं। लेकिन 10 जुलाई के बाद मानसून की गतिविधियाँ लगभग थम सी गईं। शुरुआत में जोरदार वर्षा ने लोगों को यह विश्वास दिलाया था कि शायद इस वर्ष बारिश के नए रिकॉर्ड स्थापित होंगे। लेकिन अचानक आई इस थमाव के कारण राजधानी लखनऊ समेत 30 से अधिक जिलों में गर्मी और उमस की समस्या बढ़ गई है।
वर्षा की कमी के आंकड़े
मौसम विभाग के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2020 से बारिश का स्तर लगातार कम हुआ है। इस वर्ष जून से अब तक सामान्य से 37 प्रतिशत कम वर्षा दर्ज की गई है। इस कमी के परिणामस्वरूप न केवल कृषि पर असर पड़ा है। बल्कि जल संचयन की समस्याएं भी गंभीर हो गई हैं। खेती पर निर्भर ग्रामीण इलाकों में फसलों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है और जलाशयों में पानी का स्तर भी चिंताजनक रूप से नीचे चला गया है।

मानसून की बरसात सामान्य कम
वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक अतुल कुमार सिंह के अनुसार 21वीं सदी में मानसून की बरसात सामान्य से 20 से 40 प्रतिशत तक कम हुई है। विशेषकर वर्ष 2020 से अब तक की गई वर्षा में लगातार कमी आई है। जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और वातावरण में बढ़ते प्रदूषण के स्तर को माना जा रहा है। यह स्थिति न केवल खेती के लिए चुनौतीपूर्ण है। बल्कि भूजल स्तर के गिरने से पेयजल संकट की समस्या भी बढ़ रही है।
आने वाले दिनों की संभावनाएं
मौसम विभाग की ताजा जानकारी के अनुसार शनिवार को पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारी वर्षा होने की संभावना है। विशेष रूप से गोरखपुर, संत कबीर नगर, बस्ती और कुशीनगर जैसे जिलों में अधिक वर्षा होने की उम्मीद है। इस बारिश से क्षेत्रीय किसानों और आम नागरिकों को कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन लखनऊ समेत कई अन्य जिलों में भी बादलों की आवाजाही और वज्रपात के साथ वर्षा की संभावना है। जिससे स्थानीय प्रशासन को आपदा प्रबंधन के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है।
उत्तर प्रदेश में मानसून की धीमी गति ने एक ओर जहाँ जल संकट की स्थिति को और विकट बना दिया है। वहीं आने वाले दिनों में अच्छी बारिश की उम्मीदें अभी भी बनी हुई हैं। जो क्षेत्र के लिए एक सुखद संकेत हो सकते हैं।