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मछली पकड़ने के लिए जाल नही बल्कि बिजली करंट का करते है इस्तेमाल, इस अनोखी तकनीक के बारे में बहुत लोगों को नही पता

थारू लोगों ने मछली पकड़ने का एक अलग तरीका अपनाया है। पतली बांस की छड़ी पर एल्यूमीनियम की परत लगाते हैं। फिर उसे पीठ पर लदे बैग में बैट्री से जोड़कर छड़ी पर लपेटते हैं।

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मछली पकड़ने के लिए जाल नही बल्कि बिजली करंट का करते है इस्तेमाल

थारू लोगों ने मछली पकड़ने का एक अलग तरीका अपनाया है। पतली बांस की छड़ी पर एल्यूमीनियम की परत लगाते हैं। फिर उसे पीठ पर लदे बैग में बैट्री से जोड़कर छड़ी पर लपेटते हैं।

आपने मछली पकड़ने में कई तरीके देखे होंगे। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे तकनीक को शायद ही कभी देखा होगा। जंगलों के किनारे रहने वाले आदिवासी लोगों ने मछली पकड़ने के लिए इसी तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया है।

पश्चिम चम्पारण जिले के गौनाहा और हरनाटांड़ प्रखंड में बहुत से आदिवासी लोग रहते हैं। विशेष रूप से, यह क्षेत्र वाल्मिकी टाइगर रिजर्व के घने जंगलों से घिरा है। यहाँ की जनता मछली खाती है। ऐसे में यहां मछली पकड़ने के लिए एक विशिष्ट तकनीक का उपयोग किया जाता है।

स्थानीय लोगों ने मछली पकड़ने की इस विशिष्ट प्रक्रिया में बांस की दो छड़ियों पर एल्युमिनियम चढ़ाया है। फिर पीठ पर बैग में बैट्री और मिनी इन्वर्टर से उसे जोड़ते हैं। ऐसे में बैट्री को AC में बदलने के लिए एक करंट इन्वर्टर का उपयोग किया जाता है, जो छड़ी के माध्यम से एल्युमिनियम तक पहुंचता है।

अब छिछले पानी में छड़ी को सटाया जाता है, जहां मछलियां हैं। स्थानीय निवासी शुभम का कहना है कि करंट का दायरा 1 मीटर तक है। जिससे 220 वोल्ट का झटका निकलता है। इस झटके से मछलियां अचेतन हो जाती हैं और पकड़ में आ जाती हैं।

यहां के लोग हर दिन इसी तकनीक से मछलियों को पकड़ते हैं, जो शुभ है। एक व्यक्ति आधे घंटे में लगभग पांच किलो मछली पकड़ सकता है। इस सेटअप को बनाने में 500 से 600 रुपये खर्च आते हैं। पोर्टेबल इन्वर्टर के साथ बैट्री का वजन 12 किलोग्राम होता है, पीठ पर रखे बैग में 10 किलोग्राम।