राजाओं के समय में तो सर्फ या साबुन नही थे तो कैसे धोते थे कपड़े, किस चीज का इस्तेमाल करके कपड़े में लाते थे नई जैसी चमक

कपड़ों को साफ करने के लिए आज के समय में मार्केट में कई तरह के डिटर्जेंट मौजूद हैं। अगर आप इन सिर्फ और साबुन से कपड़े धोती हैं, तो आपको ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती है और आपके कपड़े भी पल भर में चकाचक हो जाते हैं लेकिन सर्फ और साबुन तो आज के समय में आए हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि इससे पहले लोग अपने गंदे कपड़ों को कैसे धोते होंगे हम आपको बता रहे हैं कि 130 साल पहले भारत में पहली बार साबुन आया था। जिस की ब्रिटिश कंपनी लीवर ब्रदर्स इंग्लैंड ने भारतीय बाजार में उतारा। आज हम जानेंगे कि जब देश में साबुन नहीं हुआ करता था तो लोग कपड़े कैसे साफ किया करते थे।
पहले इस तरह ढूंढते थे कपड़े
शुरुआती दौर में मेरठ में साल 1857 में नहाने धोने और कपड़े धोने के साबुन आया था। लेकिन इससे पहले भी भारतीय लोग ऑर्गेनिक चीजों की मदद से अपने कपड़े को धोते थे और साफ करते थे। जिसमें रीठा सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता था। उसे समय रीठा के पेड़ पौधे लगे होते थे जिससे कि रेशमी कपड़ों को साफ किया जाता था।
ऐसे करते थे रीठा का इस्तेमाल
महंगे और मुलायम कपड़ों को धोने के लिए लोग उसे समय में रीठा का इस्तेमाल करते थे लेकिन क्या आपने सोचा है कि इसे किस तरह से इस्तेमाल किया जाता था। दरअसल रीता के फलों को गर्म पानी में डाला जाता था। इससे झाग बन जाता था इस झाग को निकाल कर कपड़ों में डाला जाता था इसके बाद पत्थर या लकड़ी की मदद से कपड़ों की गंदगी को साफ की जाती थी। ऐसे में हमारे कपड़े कीटाणु मुक्त हो जाया करते थे। वैसे रीठा एक ऑर्गेनिक चीज है इसलिए यह हमारे शरीर पर हानिकारक प्रभाव नहीं डालता।