पतली पटरियों पर कैसे दौड़ती भारी भरकम ट्रेनें, जाने इसके पीछे का असली कारण

सड़क उबड़-खाबड़ होने पर किसी भी वाहन को चलाना मुश्किल होता है। वह बार-बार उलट जाती है। लेकिन आपने कभी सोचा कि रेलवे की पटरियां इतनी पतली होती हैं तो ट्रेन कैसे चलती हैं? वह इतनी भारी होने के बावजूद पलटती क् यों नहीं? बार-बार होने के बावजूद सरपट दौड़ती रहती है, फिसलती क् यों नहीं? यही प्रश्न ऑनलाइन प्लेटफार्म कोरा पर पूछा गया था। प्रयोगकर्ताओं ने अपने-अपने ढंग से उत्तर दिए। लेकिन आप सही जवाब जानते हैं?
दरअसल, यह विज्ञान है। आपने कानून में घर्षण का नियम भी पढ़ा होगा। पार्श्वकारी बल या लैटरल बल, जो ट्रेन के दोनों किनारों से लगता है, एक निश्चित सीमा के अंदर ही रहता है। ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होने या पटरी से उतरने का खतरा नहीं है जब तक पार्श्वकारी बल लंबवत लगने वाले बल से ३० या ४० प्रतिशत से अधिक नहीं होता। बल का इस स्तर बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक उपाय किए जाते हैं। ट्रेन को दुर्घटना से बचाने के लिए अधिकतम गति से कम पर चलाया जाता है।
नियमित सुरक्षा जांच
हादसे नहीं होते। ट्रेन पटरी से उतर जाती है जब पटरियों की सुरक्षा में खराबी होती है। इसलिए वे बार-बार जांच किए जाते हैं। पटरी बिछाने में इनका खास ध्यान रखा जाता है। ड्राइवर को भी इस बारे में विशेष ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे मानक से आगे न निकलें।
तो फिर ट्रेन कैसे मुड़ती है?
ट्रेन अंदर से पटरी को पकड़कर चलती है। यानी ट्रेन के टायर पटरी में फिट होते हैं, और टायर के अंदर बड़ा हिस्सा पटरी को कसकर रखता है। ऐसे में ट्रेन की पटरी आगे बढ़ती है। मान लीजिए, ट्रेन सीधी होगी अगर उसकी शेप भी सीधी होगी। जहां यह मुड़ता है, वहां पटरी थोड़ी अलग होती है। पटरी के बीच लोहे की पटरी लगी होती है, जिसे आप देखेंगे। यह अगली ट्रेन को दिशा देता है। यह थोड़ा घूम गया है,