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इन हालातों का फायदा उठाकर किराएदार बन सकता है प्रॉपर्टी का मालिक, जाने क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैंसला

घर का किराया एक स्थायी इनकम है, इसलिए लोग संपत्ति में निवेश करते हैं, जैसे कि घर, दुकान, और ज़मीन। वे इन आस्सेट्स को खरीदते हैं
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घर का किराया एक स्थायी इनकम है, इसलिए लोग संपत्ति में निवेश करते हैं, जैसे कि घर, दुकान, और ज़मीन। वे इन आस्सेट्स को खरीदते हैं और फिर उन्हें किराए पर देते हैं। कई बार मालिक किराए पर दिए अपनी प्रॉपर्टी की सुध नहीं लेते, क्योंकि वे विदेश चले जाते हैं या फिर वे अपने दैनिक कामों में व्यस्त रहते हैं और सिर्फ़ महीने के किराए से ही संतुष्ट हो जाते हैं।

लेकिन किराए पर देने और किराए पर लेने के दौरान भी, मालिकों को कुछ मुद्दों का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो प्रॉपर्टी से हाथ धोना पड़ सकता है। हमारे देश में संपत्ति को लेकर कुछ क़ानून हैं, जिसमें कहा गया है कि किराएदार एक संपत्ति पर बिना मालिक के पर्मिशन के 12 साल तक रहने के बाद क़ब्ज़ा कर सकता है। यहां तक कि कुछ शर्तें भी हैं, जैसे कि मालिक ने 12 साल के अंदर कब्जे को रोका नहीं है, हालांकि इसकी कुछ शर्तें हैं. इतना आसान नहीं है. लेकिन आपकी प्रॉपर्टी विवाद में आ जाएगी।

किराएदार कब प्रॉपर्टी पर कब्जा दावा कर सकता है?

किराएदारों के लिए एक कानून है, जिसे "प्रतिकूल कब्जा" या अंग्रेजी में "adverse possession" कहा जाता है। इसके अनुसार, जब कोई किराएदार किसी प्रॉपर्टी पर लगातार 12 साल तक रहता है, तो वह उस प्रॉपर्टी पर कब्जा दावा कर सकता है। लेकिन इसके कुछ शर्तें होती हैं। उदाहरण के लिए, प्रॉपर्टी के मालिक ने 12 साल के दौरान कब्जे को रोका नहीं होना चाहिए, यानी किराएदार का कब्जा बिना ब्रेक के लगातार रहना चाहिए। कोई ब्रेक नहीं होना चाहिए। किराएदार को प्रॉपर्टी के डीड, पानी की बिल, बिजली की बिल जैसी दस्तावेज को सबूत के तौर पर पेश कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर भी निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जब किसी प्रॉपर्टी के विवाद को सुना, तो उसने यह कहा है कि जब किसी किराएदार ने उस प्रॉपर्टी पर 12 साल तक कब्जा रखा है, और मालिक ने उस पर कोई अधिकार नहीं जताया है, तो उस किराएदार को उस प्रॉपर्टी का मालिक माना जाएगा। यह फैसला निजी प्रॉपर्टी से संबंधित है और सरकारी प्रॉपर्टी पर लागू नहीं होगा।

कोर्ट ने 2014 में दिए फैसले को पलट दिया

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जमीन के संबंध में दिए गए अपने ही फैसले को पलट दिया। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने 2014 के फैसले को पलटते हुए कहा कि जब कोई किसी जमीन पर दावा नहीं करता है और किराएदार 12 साल से लगातार वहाँ रहता है, तो वह उस जमीन का मालिक माना जाता है।

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था जिसमें कहा था कि व्यक्ति जो प्रतिकूल कब्जे में है, वह जमीन पर कब्जे का दावा नहीं कर सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मालिक चाहता है कि वह उस जमीन को वापस ले, तो उसे कब्जाधारी को वह जमीन वापस करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय कानून 12 साल तक किसी जमीन पर अपना हक जताने का अधिकार देता है। अगर किसी जमीन पर विवाद है, तो व्यक्ति उस पर अपना हक जताने के लिए 12 साल के भीतर मुकदमा दायर कर सकता है और उसे अदालत से वापसी पा सकता है।

बता दें कि लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत निजी संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा करने का समय 12 साल है, जबकि सरकारी जमीन पर यह समय 30 साल होता है। जबरन कब्जे के मामले में 12 साल के अंदर दावा किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि 12 साल तक जमीन पर कब्जा बरकरार रहने और मालिक की ओर से आपत्ति नहीं जताने की स्थिति में वो संपत्ति कब्जा करने वाले व्यक्ति की हो जाती है।

अगर कब्जेदार को जबरन संपत्ति से बेदखल किया जाता है, तो वो 12 साल के भीतर मुकदमा दायर कर सकता है और अपने हितों की रक्षा कर सकता है। सिर्फ वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी से आप किसी संपत्ति के मालिक नहीं बन सकते।

ऐसी स्थितियों से बचने के लिए, मालिकों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए

आपने जब किराए पर दिया हो, तो 11 महीने की किराया अग्रीमेंट बनाएं। यदि आवश्यक हो, तो 11 महीने बाद इसे रिन्यू किया जा सकता है। इससे यह फायदा होगा कि ब्रेक आ आएगा। ब्रेक आ जाने से किराएदार कब्जे का दावा नहीं कर पाएगा।