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हरियाणा के किसान इस फार्मूलें को अपनाकर ले सकते है बंपर पैदावार, वैज्ञानिकों ने किसानों को बताए नए तरीके

हरियाणा में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ ने कहा कि प्रदेश में कपास को गुलाबी सूंडी के प्रकोप से बचाने के लिए राज्यव्यापी अभियान चलाया जा रहा है।
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हरियाणा के किसान इस फार्मूलें को अपनाकर ले सकते है बंपर पैदावार

हरियाणा में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ ने कहा कि प्रदेश में कपास को गुलाबी सूंडी के प्रकोप से बचाने के लिए राज्यव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। 

कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार, किसानों को 15 अप्रैल से 15 मई के बीच कपास की अगेती या बिजाई नहीं करनी चाहिए। गुलाबी सूंडी का प्रकोप कपास उत्पादन को २० से २२ प्रतिशत तक कम करता है।

स्थानीय कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के स्थानीय कार्यालय में डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ प्रेस प्रतिनिधियों से चर्चा कर रहे थे। उनका कहना था कि किसानों को अधखिले टिंडो को घरों में नहीं रखना चाहिए, बल्कि उनका उचित प्रबंधन करना चाहिए। इन्हें मिट्टी में मिलाकर भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ा सकते हैं। 

उनका कहना था कि प्रदेश के दस जिलों में लगभग 15 लाख एकड़ कपास की खेती की जाती है, जिससे लगभग ढ़ाई लाख परिवार जुड़े हुए हैं। 12 हजार एकड़ क्षेत्र में कपास की खेती रोहतक जिले में की जाती है। सरकार ने कपास का समर्थन मूल्य प्रति क्विंटल 6620 रुपये निर्धारित किया है।

प्राकृतिक धान और गेंहू की खेती करके स्वस्थ खाद्यान्न उत्पादन करें 

डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ ने कहा कि तेलंगाना राज्य से कपास फसल में गुलाबी सूंडी की बीमारी आई है। तेलंगाना में 18 लाख मीट्रिक टन कपास उत्पादित होता है, जबकि उत्तर भारत में 16 लाख मीट्रिक टन। 

तेलंगाना ने गुलाबी सूंडी पर पूर्ण अधिकार पाया है। अमेरिकन सूंडी का प्रकोप भी इस वर्ष बाजरे की फसल में देखा गया, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था। सरकार किसानों को जागरूक कर रही है ताकि वे ऐसी बीमारियों पर पूर्ण नियंत्रण पा सकें और उत्पादन बढ़ा सकें। 

उनका दावा था कि राज्य में लगभग 56 लाख एकड़ गेहूं की खेती की जाती है। उन्होंने कहा कि गेहूं धान की प्राकृतिक खेती करने से किसानों को स्वस्थ खाद्यान्न मिलेगा, साथ ही फसल विविधीकरण भी अपनाया जाएगा।

किसानों को अच्छे बीज और दवाईयां देने के लिए विभाग प्रतिबद्घ है 

विभाग के निदेशक ने कहा कि किसानों को बीज और दवाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ऐसी बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए दवा की सिफारिश की है। 

सरकार ने ड्रोन को फसलों में नैनो डीएपी और यूरिया के छिडक़ाव के लिए बढ़ावा दिया है। इसके लिए विभाग ने आवेदन मांगे थे। प्रशिक्षित करने के लिए पहली चरण में पांच सौ आवेदन प्राप्त हुए हैं। विभाग का लक्ष्य किसानों को अच्छे बीज और दवाईयां देना है। 

विभाग ने कई टीमों और टोल फ्री नंबरों को बनाया है। नागरिकों को खराब दवा व बीज बेचने वालों की शिकायत करने का अधिकार है। विभाग जांच पर सख्त कार्रवाई करेगा।

किसान पराली का उचित प्रबंधन: सरकार द्वारा किए गए उपायों से पराली जलाने के मामलों में लगातार कमी आई है
डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ ने कहा कि 3 सैटेलाइट दिन-रात पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी कर रहे हैं। सरकार और विभाग द्वारा किए गए उपायों से पराली जलाने के मामलों में पिछले वर्ष ४८ प्रतिशत और इस वर्ष ३८ प्रतिशत कमी आई है। प्रदेश में 2021 में 6987 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए, 2022 में 3661 मामले दर्ज किए गए और 2023 में अब तक 1857 मामले दर्ज किए गए। 

अब तक सरकार ने पराली जलाने वालों से साढ़े पांच लाख रुपये का जुर्माना वसूला है। इस वर्ष राज्य के किसानों को कृषि मशीनरी अनुदान पर 300 करोड़ रुपये देकर फसल अवशेष को नियंत्रित किया गया है। 

वे किसानों से कहा कि वे पराली को आग न लगाएं। ऐसा करने से पर्यावरण प्रदूषित होता है, जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती है और सहयोगी कीट मर जाते हैं। फसल अवशेष मिट्टी में मिलाकर किसान मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ा सकते हैं।

कृषक फसल विविधीकरण को अपनाते हैं:
विभाग के निदेशक डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ ने किसानों से अपील की है कि वे फसल विविधिकरण का उपयोग करें। धान की फसल के स्थान पर अन्य विकल्पों की फसल उगाने पर सरकार 7 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि देता है। 

धान की सीधी बिजाई करने वाले किसानों को चार हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाती है। उनका कहना था कि विभाग किसानों को मिट्टी की आवश्यकतानुसार खाद देने के लिए सॉयल हैल्थ कार्ड बना रहे हैं। यह एक निगरानी प्रक्रिया है और प्रत्येक दो वर्ष बाद एक कार्ड मिलता है। इन कार्डों में बताए गए तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए किसान रासायनिक खाद डालकर पूरा लाभ लें।

गुलाबी सूंडी के प्रकोप से आगामी कपास की फसल को बचाने के लिए नवंबर और दिसंबर माह में किसानों को ये सावधानियां बरतनी चाहिए:
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ ने प्रेस वार्ता के दौरान स्थानीय कार्यालय में विभाग द्वारा आयोजित किसान क्लब की बैठक में किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि गुलाबी सूंडी या टिंडा गलन से प्रभावित कपास को अलग रखना चाहिए। 

कपास चुनते समय, पान-गुटखा के पैकेट, कागज और प्लास्टिक के टुकड़े, बीड़ी, सिगरेट के अवशेष और सुखी पत्तियों को बाहर नहीं डालें। मंडी में स्वच्छ कपास बेचें। घरों में भंडारित कपास को एक बंद कमरे या गोदाम में सुरक्षित रखें। 

अंतिम चुगाई के बाद भेड़-बकरियों को खेत में चरने दें। अब लकडिय़ों को रोटावेटर या श्रेडर की सहायता से कुतर कर जमीन में मिला दें, ताकि गुलाबी सूंडी जमीन में मिल जाए।

डॉ. नरहरि सिंह बांगड़ ने कहा कि किसानों को खेत में कपास की लकडिय़ां बिल्कुल भी नहीं भंडारण करनी चाहिए। गुलाबी सूंडी के अधिक प्रकोप से प्रभावित लकडिय़ों को शून्य या कम प्रकोप वाली जगह पर ले जाने से बचें। 

लकड़ी को घरों में उपयोग करने के लिए खेत से दूर एक गांव में लंबवत भंडारित करें और मार्च तक इसका उपयोग करें। ताकि कपास की फसल में गुलाबी सूंडी की बीमारी से बचने और उच्च उत्पादन प्राप्त करने के लिए, जागरूक किसानों को भंडारित लकड़ी और कपास के उचित प्रबंधन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी देना चाहिए।