लैपटॉप या मोबाइल से निकलने वाली ब्लू लाइट को कैसे रोकता है चश्मा, क्या इससे सच में आंखो का होता है बचाव

अक्सर माना जाता है कि चश्मा पहनने से आंखों का तनाव कम होता है, नींद की गुणवत्ता बढ़ती है तथा नेत्रों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है. चश्मे का इस्तेमाल कोई भी कर सकता है. ऑप्टोमेट्रिस्ट के द्वारा भी चश्मा निर्धारित किया जा सकता है. लेकिन क्या चश्मा केवल हमें लाभ पहुंचता है इसके कोई नुकसान नहीं होते.
इसकी जांच करने के लिए मेलबर्न विश्वविद्यालय, मोनाश विश्वविद्यालय तथा सिटी यूनिवर्सिटी लंदन के सदस्यों वाली एक रिसर्च टीम ने नीली रोशनी- फिल्टरिंग चश्मे के साथ परीक्षण किया. आईए जानते हैं कि आखिर नीली रोशनी क्या होती है और इसके परीक्षण से क्या निष्कर्ष निकाला गया.
नीली रोशनी
नीली रोशनी का प्राथमिक स्रोत सूर्य है अर्थात यह हमारे वातावरण में मौजूद है. वातावरण के अलावा हमारे घरों के अंदर मौजूद एलईडी और डिजिटल डिवाइस स्क्रीन सहित कई प्रकाश स्रोत, विभिन्न तीव्रता की नीली रोशनी उत्सर्जित करते हैं. हालांकि उपकरणों के द्वारा उत्सर्जित की गई नीली रोशनी सूर्य के द्वारा उत्सर्जित की गई रोशनी की तुलना में काफी कम होती है.
शोध करने के लिए टीम ने 6 अलग-अलग देशों के 619 लोगों को शामिल किया. इस अध्ययन में उन्हें 17 अलग-अलग परीक्षणों से गुजरना पड़ा. अध्ययन से निष्कर्ष निकाला गया कि स्पष्ट लेंस की तुलना में नीली रोशनी-फिल्टरिंग लेंस का उपयोग आंखों के तनाव को कम करने में कोई फायदा नहीं देता. आंखों के तनाव का मूल्यांकन करने में स्टडी के द्वारा 2 घंटे से लेकर 5 दिन तक का समय शामिल है.
जानिए चश्मा पहनने के नुकसान
कुछ अध्ययनों के अनुसार नीली रोशनी फिल्टरिंग चश्मा हमें नुकसान पहुंचता है. इससे प्रतिभागियों में सिर दर्द, असुविधा और मूड स्विंग्स होते हैं. बता दें कि लेंस का उपयोग करने वाले व्यक्तियों ने समान प्रभाव की जानकारी दी. अध्ययन की अवधि समिति तथा व्यापक प्रभावों को निर्णायक रूप से निर्धारित नहीं किया गया.
लेंसो की प्रभावशीलता और स्पष्टता स्वास्थ्य स्थिति तथा उम्र के आधार पर भिन्न हो सकती है. आंखों में तनाव या किसी अन्य समस्या का अनुभव होने पर खुद से ही चश्मा का सुझाव नहीं ले बल्कि ऑप्टोमेट्रिस्ट से विचार विमर्श करें.