शीत युद्ध के दौर में जब दुनिया दो विपरीत ध्रुवों में बंटी हुई थी। तब तकनीकी प्रगति के क्षेत्र में रूस ने कई महत्वपूर्ण और दिलचस्प प्रयोग किए। इनमें से एक था— रेलगाड़ियों में प्लेन का इंजन लगाना। यह उस समय का ऐसा प्रयोग था जिसने ट्रेनों की गति की परिभाषा ही बदल दी थी।
तकनीकी विवरण और विशेषताएं
सोवियत संघ ने 1960 के दशक में एक हाई-स्पीड ट्रेन की अवधारणा को जीवन दिया। जिसे ‘स्पीडी वैगन लेबोरेटरी’ कहा जाता था। इस अनूठी ट्रेन में विमान का टर्बोजेट इंजन लगा हुआ था। जिससे इसकी गति असाधारण रूप से बढ़ जाती थी। इस ट्रेन को ‘टर्बोजेट ट्रेन’ के नाम से भी जाना जाता है।
उद्देश्य और परीक्षण
इस ट्रेन का मुख्य उद्देश्य था हाई-स्पीड रेलवे यात्रा के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना। इसके लिए ER22 रेलकार पर जेट इंजन लगाए गए थे। जिसे सामान्यत: इलेक्ट्रिक पावर्ड मल्टीपल यूनिट ट्रेन में उपयोग किया जाता था।
प्रदर्शन और इतिहास
टर्बोजेट ट्रेन ने अपनी शीर्ष गति 249 किमी/घंटा तक पहुंचा दी थी, जो कि कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार 274 किमी/घंटा तक भी जा सकती थी। हालांकि इस गति को संभाल पाना उस समय की रेलवे तकनीक के लिए एक चुनौती थी।
प्रोजेक्ट की समाप्ति
दुर्भाग्यवश यह प्रयोग अंतत: सफल नहीं हो सका क्योंकि इसकी उच्च गति और भारी भरकम संरचना के लिए उपयुक्त रेलवे ट्रैक और स्टेशनों का निर्माण आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं था। 1975 में इस परियोजना को बंद कर दिया गया।
वर्तमान में टर्बोजेट ट्रेन
आज भी यह टर्बोजेट ट्रेन रूस में मौजूद है, जो ट्वेर शहर के एक रेलकार कारखाने के बाहर स्थापित एक स्मारक के रूप में खड़ी है। यह ट्रेन आज भी उस दौर की याद दिलाती है जब रूस ने रेल यात्रा की गति को चरम सीमा तक पहुंचाने की कोशिश की थी।