हरियाणा में वन विभाग की स्थिति दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। 20 नवंबर 2024 को उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, विभाग में 3,809 पदों में से 2,075 पद खाली हैं। इनमें वन रक्षकों के 1,547 पदों में से 1,012 पद खाली पड़े हैं। यह स्थिति न केवल विभाग के कामकाज को बाधित कर रही है, बल्कि जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा पर भी गहरा असर डाल रही है।
वन रक्षकों की कमी ने बढ़ाया संकट
हरियाणा में आखिरी बार वन रक्षकों की भर्ती 2010 में हुई थी। तब से अब तक विभाग में भर्ती प्रक्रिया बंद पड़ी है। वन रक्षक 10-15 गांवों के जंगलों की देखभाल के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनका काम अवैध कटान रोकना, वन्यजीवों की सुरक्षा करना और जंगलों में अवैध निर्माण पर नजर रखना है। लेकिन जब 1,547 पदों में से 1,012 पद खाली हों, तो जिम्मेदारी निभाना मुश्किल हो जाता है।
वन विभाग की यह समस्या पिछले कई सालों से बनी हुई है। पूर्व वन संरक्षक आरपी बलवान के अनुसार, 2005 में उनके रिटायर होने तक दक्षिण हरियाणा में वन रक्षकों की संख्या 280 से घटकर 100 रह गई थी। तब भी 60-70% पद खाली थे, लेकिन अब यह संकट और गहरा हो चुका है।
अधिकारियों की कमी ने बढ़ाई मुश्किलें
वन विभाग में केवल वन रक्षकों की ही नहीं, अधिकारियों की कमी भी बड़ा मुद्दा है। हरियाणा वन सेवा (एचएफएस) के अधिकारियों की आखिरी भर्ती 2004 में हुई थी। इस साल रिटायर हुए एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 1990 के दशक तक विभाग में सीधे भर्ती प्रक्रिया सरल थी। डीएफओ (डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर) अपने स्तर पर गार्ड और अन्य स्टाफ रख सकते थे।
बाद में यह प्रक्रिया हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) को सौंप दी गई। इसके बाद से भर्तियों की गति धीमी पड़ गई। अधिकारियों ने बताया कि भर्ती प्रक्रिया में बदलाव और नई नीतियों ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
जंगलों की सुरक्षा पर प्रभाव
वन रक्षकों और अधिकारियों की भारी कमी का सीधा असर जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा पर पड़ रहा है।
अवैध कटाई और अतिक्रमण
जंगलों में अवैध कटाई और अतिक्रमण की घटनाएं बढ़ रही हैं। विभाग के पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है, जो इन गतिविधियों पर काबू पा सके।
वन्यजीवों की सुरक्षा
हरियाणा के जंगलों में वन्यजीव संरक्षण की स्थिति चिंताजनक है। वन रक्षकों की कमी के कारण इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना मुश्किल हो गया है।
जंगलों का प्रबंधन
10-15 गांवों के जंगलों की देखभाल के लिए एक ही वन रक्षक पर निर्भर रहना असंभव है। इससे जंगलों का समुचित प्रबंधन बाधित हो रहा है।
भर्ती न होने के पीछे क्या है कारण?
विशेषज्ञों का मानना है कि वन विभाग की कमजोरी का मुख्य कारण सरकार की प्राथमिकता में इसकी कमी है। पूर्व अधिकारी बताते हैं कि 1990 के दशक तक जाति आधारित भर्तियां होती थीं। जैसे ही यह प्रक्रिया बदली और इसे आयोग के अधीन किया गया, भर्तियां ठप पड़ने लगीं।
हर साल प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) सरकार को भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह करते हैं। लेकिन यह मामला पिछले 14 सालों से ठंडे बस्ते में पड़ा है।