इंसान की बुद्धि कब हो जाती है भ्रष्ट, खुद को इस जाल मे फँसने से बचाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें

मनुष्य के जीवन में एक वक्त ऐसा भी आता है जब मनुष्य की बुद्धि नियंत्रण से बाहर हो जाती है। फिर चाहे वह कितना ही बुद्धिमान और विवेकवान भी क्यों न हो। उस वक्त मनुष्य के सोचने समझने की शक्ति जीरो हो जाती है। यह हालात मनुष्य को न चाहते हुए भी गलत रास्ते पर ले जाते हैं और समस्या का समाधान निकलने की बजाय परेशानी और बढ़ जाती है। चाणक्य ने बताया है कि व्यक्ति की बुद्धि कब भ्रष्ट हो जाती है और इन हालातों में व्यक्ति को क्या करना चाहिए जिससे वह संकटों से बाहर आ सके। तो चलिए जानते हैं की इस बारें मे चाणक्य की नीति क्या कहती है।
न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरङ्गी।
तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः।।
चाणक्य ने कहा था कि जब जीवन कठिन चुनौतियों से भरा होता है, तो व्यक्ति की बुद्धि और विवेक का गायब होना आसान होता है। इन कठिन परिस्थितियों में, कभी-कभी बहुत चतुर व्यक्ति भी गलतियाँ कर सकता है। सही और गलत की उनकी समझ धूमिल हो जाती है और अंत में वे नुकसान ही पहुंचाते हैं।
चाणक्य बताते हैं कि भले ही आज तक किसी ने सोने का हिरण नहीं देखा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह मौजूद नहीं है। वास्तव में श्री राम वनवास के दौरान एक के बाद एक गए और उसे पकड़ने में सफल रहे। हालांकि उस दौरान रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था।
बुरा वक्त आने पर दिमाग कई बार काम करना बंद कर सकता है। यह तो आम बात है, लेकिन चाणक्य कहते हैं कि मुश्किल समय में अगर हम अपने दिमाग पर काबू पा लें तो कई समस्याओं को टाल सकते हैं। अहंकार, लोभ और क्रोध ये सब हमारी बुद्धि को दूषित कर सकते हैं, इसलिए कठिन समय में धैर्य रखें और सही समय की प्रतीक्षा करें। आप अवश्य सफल होंगे।
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