Sarso Ki Kheti: रबी सीजन में सरसों की खेती किसान भाइयों के लिए महत्वपूर्ण अवसर होती है, लेकिन इस बार मौसम में बदलाव और अधिक तापमान के कारण सरसों की बुवाई प्रभावित हुई है। तापमान में उतार-चढ़ाव और सही देखभाल की कमी से सरसों की फसल बीमारियों के शिकार हो सकती है। इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे प्रभावी उपाय बताएंगे, जिनकी मदद से आप अपनी सरसों की फसल को बीमारियों से बचा सकते हैं और अच्छे उत्पादन की उम्मीद कर सकते हैं।
सरसों की फसल में बीमारियों का संकट
दिसंबर के महीने में सरसों की फसल पर बीमारियों का संकट मंडरा रहा है, और इस बार तापमान अधिक होने के कारण कई जगहों पर बुवाई में देरी हुई है। राजस्थान, उत्तर भारत और अन्य राज्यों में तापमान का असर सीधे तौर पर सरसों की फसल पर पड़ा है, जिससे फसल अंकुरित नहीं हो पाई या फिर अकुंरण के बाद मुरझा गई। इसके अलावा, गलन, तना सड़न, और बैक्टीरिया संक्रमण जैसी बीमारियाँ भी फसल के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती हैं।
बीमारियों से बचाव के उपाय
- गलन रोग (Damping-Off Disease)
गर्म दिन और ठंडी रातों के कारण सरसों की जड़ों में गलन की समस्या हो सकती है। इस रोग से बचने के लिए पेंटोनाइड सल्फर का 1.5 से 2 किलोग्राम प्रति बीघा के हिसाब से खेत में भुकराव करें। यदि जड़ों में गलन हो, तो मेटालैक्सिल का आधा ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। अगर रोग प्रारंभिक अवस्था में हो, तो कार्बेंडाजिम दवा का 0.2% घोल बनाकर छिड़काव करें। - तना सड़न रोग (Stem Rot)
तना सड़न रोग सरसों की फसल के लिए गंभीर समस्या बन सकता है। इसे रोकने के लिए रोगग्रस्त फसल अवशेषों को जला कर गाड़ दें। खेत को खरतपवार से मुक्त रखें और जरूरत से अधिक सिंचाई से बचें। कार्बेंडाजिम (बविस्टीन) की 1 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। - बैक्टीरिया संक्रमण
अगर फसल में बैक्टीरिया संक्रमण हो तो इसे रोकने के लिए स्टेप्टोसाइक्लीन (3 ग्राम) और कार्बेंडाजिम (30 ग्राम) को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह उपचार बैक्टीरिया के संक्रमण को नियंत्रण में रखने में मदद करता है।