Agriculture News: केले की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है, लेकिन इस फसल के साथ कई समस्याएं भी जुड़ी होती हैं, खासकर दिसंबर महीने में। इस समय केले के पौधों और फलों में कुछ विशेष प्रकार के फफूंद जनित रोग फैल सकते हैं, जो उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें प्रमुख रोग हैं – पीला सिगाटोका, काला सिगाटोका, और पनामा विल्ट। इन रोगों से बचाव के लिए सही समय पर उपाय करना बहुत जरूरी है।
- पीला सिगाटोका रोग (Yellow Sigatoka)
यह एक फफूंद जनित रोग है, जो केले के पौधों के पत्तों को प्रभावित करता है। इस रोग के कारण नए पत्तों पर हल्के पीले धब्बे या धारीदार लाइनें दिखाई देती हैं। समय के साथ ये धब्बे बड़े हो जाते हैं और भूरे रंग के हो जाते हैं। अंततः इन धब्बों का केंद्र हल्का कत्थई हो जाता है।
पीला सिगाटोका से बचाव के उपाय
प्रतिरोधी किस्म के पौधों का चयन करें। खेत को खरपतवार से मुक्त रखें। खेत में अधिक पानी की निकासी करें। प्रति एकड़ 1 किलो ट्राइकोडर्मा विरिडे को 25 किलो गोबर खाद के साथ मिलाकर मिट्टी में डालें।
- काला सिगाटोका रोग (Black Sigatoka)
यह भी एक फफूंद जनित रोग है, जो केले के पत्तों पर काले धब्बे और धारीदार लाइनें बना देता है। यह रोग अधिक तापमान के कारण फैलता है और इससे केले परिपक्व होने से पहले ही पक जाते हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।
काला सिगाटोका से बचाव के उपाय:
रासायनिक फफूंदनाशक कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का उपयोग करें। 1 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इससे फल जल्दी पकने से बचते हैं और किसान को लाभ होता है।
- पनामा विल्ट रोग (Panama Wilt)
पनामा विल्ट रोग के कारण पौधों में अचानक सूखापन आ जाता है। सबसे पहले पौधे की निचली पत्तियां पीली होकर मुरझाती हैं और फिर सूख जाती हैं। इसके बाद तना सड़ने लगता है और उसमें सड़ी मछली जैसी गंध आने लगती है।
पनामा विल्ट से बचाव के उपाय
कार्बेन्डाजिम डब्लू.पी. का घोल बनाकर छिड़काव करें। 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। चूंकि केले की पत्तियां चिकनी होती हैं, इसलिए घोल में स्टीकर मिलाने से यह अधिक प्रभावी होता है।