Cotton Price: कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) के अनुसार गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे प्रमुख कॉटन उत्पादक क्षेत्रों में खराब मौसम और किसानों का अन्य फसलों की ओर रुख करना (shift to other crops) मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से कॉटन के रकबे में 14 लाख हेक्टेयर की कमी आई है. इस गिरावट का प्रभाव न केवल स्थानीय बाजारों पर पड़ रहा है. बल्कि इसके व्यापक आर्थिक प्रभाव भी देखे जा सकते हैं.
देश में कॉटन की बढ़ती खपत और इसके प्रभाव
कॉटन की खपत में स्थिरता बनी हुई है, जो कि उत्पादन से अधिक है. इस वर्ष कॉटन की खपत 313 लाख बेल्स की उम्मीद है, जो कि उत्पादन को पार कर गई है. इस स्थिति ने बाजार में सप्लाई की तंगी (supply shortage) का माहौल बनाया है और इसका सीधा असर कॉटन के दामों पर पड़ रहा है.
एक्सपोर्ट में गिरावट और आयात में बढ़ोतरी
उपलब्धता में कमी के कारण इस साल कॉटन एक्सपोर्ट में 37% की भारी गिरावट आने की संभावना है. इसके विपरीत आयात में 43% की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. जिससे आयातित कॉटन की मात्रा 25 लाख बेल्स तक पहुंच सकती है. इस बढ़ोतरी से घरेलू मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी. लेकिन सप्लाई पर दबाव (pressure on supply) बना रहेगा.
कॉटन की कीमतों पर बढ़ता दबाव
भारत में कॉटन की कुल सप्लाई 357.44 लाख बेल्स तक पहुंचने का अनुमान है. जबकि सीजन के अंत तक क्लोजिंग स्टॉक्स में गिरावट आई है. कम होते स्टॉक्स और बढ़ती खपत के चलते कॉटन की कीमतों में बढ़ोतरी (increase in cotton prices) होने की संभावना है. जिसका असर घरेलू और ग्लोबल बाजारों पर पड़ेगा.