भारत में पशुपालन खेती के बाद किसानों के लिए दूसरा मुख्य आय का स्रोत है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में यह गतिविधि न केवल आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है। बल्कि सामाजिक स्थिति में भी सुधार लाती है। गाय और भैंस पालन तो ग्रामीण भारत की परंपरा का हिस्सा हैं। जिसे बहुत से किसान और पशुपालक व्यवसायिक तौर पर अपनाकर अच्छी खासी आमदनी भी प्राप्त कर रहे हैं।
हरधेनू गाय
हरधेनू गाय जो कि अपनी उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता के लिए जानी जाती है। वास्तव में एक क्रांतिकारी प्रजाति है। इस गाय की नस्ल किसी भी पशुपालक के लिए वरदान से कम नहीं है क्योंकि यह एक दिन में 50 से 60 लीटर तक दूध दे सकती है, जो कि अन्य देसी नस्लों के मुकाबले काफी अधिक है।
हरधेनू गाय की पहचान और खासियत
हरधेनू गाय की शारीरिक विशेषताएं इसे अन्य नस्लों से अलग करती हैं। इसका सफेद रंग और शरीर पर काले धब्बे, ऊंची कद-काठी और सींग रहित होना इसकी पहचान हैं। इसकी ये खासियतें न केवल इसे आकर्षक बनाती हैं बल्कि इसकी उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता भी इसे विशेष बनाती है।
आर्थिक लाभ और पशुपालन में हरधेनू का महत्व
एक हरधेनू गाय न केवल अधिक दूध देती है बल्कि इसका दूध हाई क्वालिटी का होता है जिससे डेयरी उत्पादों की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। इस नस्ल को पालने वाले पशुपालकों ने न केवल अपनी आय में वृद्धि की है बल्कि एक स्थिर और निरंतर आय का स्रोत भी बनाया है।
बाजार में हरधेनू गाय की मांग
इस नस्ल की गायों की मांग बाजार में बहुत ज्यादा है। खासकर जब ये ब्याने के साथ होती हैं। उनकी कीमत 1.5 से 2 लाख रुपए के बीच होती है, जो कि उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता और स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करती है।