Chanakya Niti: हिंदू धर्म में दान को एक शुभ कर्म माना गया है और चाणक्य ने भी इसे उत्तम कार्य बताया है। आचार्य चाणक्य का मानना था कि दान (Chanakya on donation) करने से किसी व्यक्ति की संपत्ति घटती नहीं है। बल्कि इससे संपत्ति में वृद्धि होती है। यह विचार न केवल समृद्धि को आकर्षित करता है बल्कि सामाजिक उत्थान में भी योगदान देता है।
चाणक्य के अनुसार दान की सीमा
आचार्य चाणक्य ने दान देते समय एक विशेष चीज का ध्यान रखने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि कोई भी व्यक्ति (Responsible giving) को कभी भी अपनी हैसियत से ज्यादा दान नहीं करना चाहिए। यह व्यक्तिगत आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखने के साथ-साथ सामाजिक योगदान को संतुलित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
चाणक्य के अनुसार दान के नियम
चाणक्य के अनुसार दान हमेशा अपनी सक्षमता (Donation according to capability) के अनुसार ही करना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बिना सोचे-समझे दान करना कई बार व्यक्ति को खुद के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। इसलिए दान करते समय विवेक का प्रयोग आवश्यक है।
दान करते समय इन चीजों का रखे ध्यान
चाणक्य कहते हैं कि दान करने की एक सीमा होती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक दान करता है, तो वह खुद को आर्थिक और सामाजिक समस्याओं में फंसा सकता है। इसलिए दान करते समय अपनी धन-संपत्ति (Consider your wealth) को ध्यान में रखना चाहिए और अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही आगे बढ़ना चाहिए।