भारत दुनिया में दूध उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे है और इसका एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालन से आता है। खेती के साथ-साथ पशुपालन भी ग्रामीण भारत में आय का मुख्य स्रोत रहा है। जिसमें बकरी पालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज हम विदेशी बकरी की चार ऐसी नस्लों पर चर्चा करेंगे जो देसी गायों से भी अधिक दूध उत्पादन में सक्षम हैं।
बकरी पालन का आर्थिक महत्व
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुपालन का बहुत बड़ा योगदान है। किसानों के लिए यह न केवल आय का स्रोत है। बल्कि यह उनके जीवनयापन का भी एक अहम हिस्सा बन चुका है। बकरी की कुछ विदेशी नस्लें जैसे कि टोगेनबर्ग, सानेन, अल्पाइन और एंग्लो नूबियन अपनी उच्च दूध उत्पादन क्षमता के लिए जानी जाती हैं। इनका पालन करने से न केवल दूध उत्पादन बढ़ता है। बल्कि किसान इससे अच्छी कमाई भी कर सकते हैं।

उच्च दूध उत्पादन वाली विदेशी बकरी की नस्लें
चार प्रमुख विदेशी बकरी की नस्लें हैं जो भारतीय किसानों के लिए लाभदायक साबित हो सकती हैं:
सानेन: स्विट्जरलैंड से आई सानेन नस्ल बेहद लोकप्रिय है, इसकी दूध उत्पादन क्षमता सबसे अधिक है। यह प्रतिदिन लगभग 4 से साढ़े 4 लीटर दूध दे सकती है।
अल्पाइन: यह भी एक स्विस नस्ल है, जिसे उसकी मजबूत और विश्वसनीय दूध उत्पादन क्षमता के लिए पसंद किया जाता है। यह बकरी रोजाना 3 से 4.5 लीटर दूध देती है।
एंग्लो नूबियन: यह नस्ल मुख्य रूप से यूरोप से है और यह दूध के साथ-साथ मांस के लिए भी पाली जाती है। यह बकरी प्रतिदिन 3 से 5 लीटर दूध दे सकती है।
टोगेनबर्ग: यह स्विस नस्ल की बकरी है, जो अपनी अच्छा दूध उत्पादन क्षमता के लिए जानी जाती है। यह प्रतिदिन 4 से 4.5 लीटर दूध देने में सक्षम है।