Vande Bharat Train Cost: वंदे भारत ट्रेनें भारतीय रेलवे के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना बन गई हैं. इन ट्रेनों को तेजी से विभिन्न रूटों पर चलाने की योजना बनाई जा रही है. रेलवे का उद्देश्य है कि यात्रियों को कम समय में अधिक सुविधाओं के साथ बेहतर यात्रा का अनुभव मिल सके. वंदे भारत ट्रेनें अपनी तेज गति, बेहतर सीटें और आधुनिक तकनीक के कारण बहुत लोकप्रिय हो रही हैं.
30,000 करोड़ का टेंडर रद्द
हाल ही में रेलवे ने 100 एल्युमिनियम बॉडी वाली वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण और 35 साल के मेंटेनेंस के लिए 30,000 करोड़ रुपये का टेंडर जारी किया था. फ्रांसीसी कंपनी एल्सटॉम इंडिया इस टेंडर में सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी थी. लेकिन रेलवे को उनकी बोली बहुत ज्यादा लगी. कंपनी ने एक ट्रेन सेट की कीमत 150.9 करोड़ रुपये बताई. जबकि रेलवे की मंशा थी कि यह कीमत 140 करोड़ रुपये से ज्यादा न हो.

रेलवे की मंशा और कंपनी की प्रतिक्रिया
एल्सटॉम ने 145 करोड़ रुपये में यह परियोजना संभालने की पेशकश की. लेकिन रेलवे ने इसे भी मंजूर नहीं किया. रेलवे अधिकारियों का मानना है कि इस टेंडर को रद्द करके वे बेहतर कीमत पर डील हासिल कर सकते हैं. एल्सटॉम के मैनेजिंग डायरेक्टर ओलिवियर लोइसन ने बताया कि कंपनी ने देश में काफी निवेश किया है और भविष्य में अगर मौका मिला तो वे इस प्रोजेक्ट में फिर से मदद करने के लिए तैयार हैं.
कॉम्पिटिशन बढ़ाने की कोशिश
रेलवे के अधिकारियों के अनुसार इस टेंडर को रद्द करने का एक कारण यह भी है कि इससे अधिक कंपनियों को इसमें भाग लेने का मौका मिलेगा. पिछले टेंडर में केवल दो कंपनियों ने भाग लिया था. जिससे प्रतिस्पर्धा कम थी. अगले टेंडर में अधिक कंपनियां भाग लेंगी. जिससे रेलवे को अच्छी कीमत पर ट्रेनों की डिलीवरी मिल सकेगी.
स्टेनलेस स्टील और एल्युमिनियम वंदे भारत ट्रेनों की तुलना
जुलाई 2023 में एल्सटॉम के सीईओ हेनरी पुपार्ट-लाफार्ज ने कहा था कि कंपनी नई एल्युमिनियम तकनीक का उपयोग कर रही है, जो ट्रेनों को हल्का और पावर बचाने वाला बनाती है. एल्युमिनियम बॉडी वाली ट्रेनें स्टेनलेस स्टील की तुलना में हल्की होती हैं. जिससे ऊर्जा की बचत होती है. इससे पहले रेलवे ने 200 स्टेनलेस स्टील वंदे भारत ट्रेन सेट बनाने का कॉन्ट्रैक्ट 120 करोड़ रुपये प्रति ट्रेन के हिसाब से दिया था.
मेंटेनेंस और निर्माण की शर्तें
रेलवे के इस टेंडर में शामिल होने के लिए कंपनियों को रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) की सुविधा होनी चाहिए, ताकि वे एक नमूना ट्रेन बना सकें. इसके अलावा उन्हें हर साल कम से कम पांच ट्रेन सेट बनाने की क्षमता भी होनी चाहिए. कॉन्ट्रैक्ट की शर्त के अनुसार जीतने वाली कंपनी को ट्रेन सेट देने पर 13,000 करोड़ रुपये मिलेंगे और बाकी 17,000 करोड़ रुपये 35 साल तक मेंटेनेंस के लिए दिए जाएंगे.
वंदे भारत ट्रेनों का भविष्य और रेलवे की योजना
भारतीय रेलवे की योजना है कि 2025 की पहली तिमाही तक वंदे भारत ट्रेनों का पहला स्लीपर वर्जन शुरू किया जाए. अब तक 102 चेयर कार और 200 स्लीपर वंदे भारत ट्रेन बनाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट दिया जा चुका है. ये ट्रेनें सेमी-हाई स्पीड हैं और इनमें 16 कोच होते हैं. जिन्हें अलग से इंजन की जरूरत नहीं होती. इस तकनीक को ‘डिस्ट्रीब्यूटेड ट्रैक्शन पावर’ कहा जाता है. जो ट्रेन को जल्दी रफ्तार पकड़ने और रोकने में मदद करती है.