श्वेत क्रांति के दौरान देश में एक नारा दिया गया था कि ‘देसी गाय से संकर गाय अधिक दूध और अधिक आय’. लेकिन यह सोच लंबे समय तक प्रभावी नहीं रह सकी क्योंकि विदेशी नस्ल की गायें भारतीय जलवायु के अनुकूल नहीं हो पाईं. विदेशों से आई गायें जैसे कि जर्सी और होलस्टीन फ्राइज़ियन रोगों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील साबित हो रही हैं. ब्रीडिंग पॉलिसी के सही पालन न करने के कारण क्रॉस ब्रीड गायें भी रोगों से बच नहीं पातीं.
फ्रीजवाल गाय की उत्पत्ति और विकास
भारतीय डेयरी उद्योग की इस समस्या को देखते हुए. आईसीएआर-केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान मेरठ ने रक्षा मंत्रालय के सहयोग से फ्रीजवाल नस्ल की गाय विकसित की है. इसमें भारतीय दूधारू गाय साहीवाल (37.5%) और होलस्टीन फ्राइज़ियन (62.5%) का गुण वंशानुक्रम है. यह नस्ल विशेष रूप से भारतीय कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए अनुकूलित की गई है.

फ्रीजवाल गाय की विशेषताएँ
फ्रीजवाल गाय एक ब्यांत में 300 दिनों तक दूध देती है और एक ब्यांत में 4000 लीटर तक दूध दे सकती है. जिसका औसत दूध उत्पादन प्रति दिन 12 से 13 लीटर होता है. शुरुआती दिनों में यह गाय दोनों समय मिलाकर कुल 20 से 22 लीटर दूध देती है. ग्रामीण परिस्थितियों में इस गाय का पालन आसानी से किया जा सकता है. इसके दूध में वसा 4.11 फीसदी, प्रोटीन 3.04 फीसदी, लैक्टोज 4.56 फीसदी, ठोस गैर-वसा 8.44 फीसदी होता है.
विदेशी नस्ल की गायों की समस्याएं
विदेशी नस्ल की गायों में गंभीर बीमारियाँ आम हैं, जैसे कि बांझपन, बार-बार गर्मी में आना और गर्भ नहीं ठहरना. इन समस्याओं के इलाज पर पशुपालकों को भारी खर्च करना पड़ता है. इसके बावजूद इन गायों का पालन करना महंगा साबित होता है और उनकी समस्याओं का समाधान भी सुनिश्चित नहीं होता. इसलिए फ्रीजवाल नस्ल की गाय को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.
भारतीय जलवायु के लिए उपयुक्त फ्रीजवाल गाय
फ्रीजवाल नस्ल की गाय भारतीय जलवायु के कठिनतम परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम है. यह गाय रोगों के प्रति अधिक सहनशील होती है और भारत की उष्ण एवं उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से विकास कर सकती है. इस नस्ल का विकास होलस्टीन फ्राइज़ियन और साहीवाल गायों के गुणों को मिलाकर किया गया है. जिससे यह अधिक दूध उत्पादन और कम बीमारी की समस्याओं के साथ सफल हो रही है.
किसानों के लिए फ्रीजवाल गाय का लाभ
फ्रीजवाल गाय का पालन करने से किसानों को अधिक दूध उत्पादन और कम खर्च में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. इस नस्ल की गायें बीमारियों से बची रहती हैं और इनके रखरखाव में भी कम खर्च आता है. इससे किसानों की आय में वृद्धि होती है और उनकी जीवनशैली में सुधार आता है.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क
मेरठ स्थित केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान से संपर्क करके फ्रीजवाल गाय के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है. यह गाय देश में आर्मी के 34 गोशाला फार्म पर पाली जा रही है. जहां से किसान संपर्क करके इसके बारे में जानकारी लेकर यह गाय प्राप्त कर सकते हैं. संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि वे अब गिर गाय और कांकरेज गाय पर भी शोध कर रहे हैं, जो किसानों की आय को और बढ़ा सकती हैं.














