कोहिनूर हीरा जिसका नाम सुनते ही चमक और शाही विरासत की छवियां जेहन में उभर आती हैं। आज भी दुनियाभर में अपनी कहानी और इतिहास के लिए मशहूर है। इस लेख में हम इस बेशकीमती हीरे के इतिहास, इसकी उत्पत्ति और इसके वर्तमान स्थान तक के सफर के बारे में विस्तार से जानेंगे।
कोहिनूर की उत्पत्ति और इतिहास
कोहिनूर हीरा जिसे फारसी में ‘रोशनी का पहाड़’ कहा जाता है। भारत के गोलकुंडा किले के पास कोल्लूर खदान से प्राप्त हुआ था। यह खदान वर्तमान में आंध्र प्रदेश में स्थित है और यहीं से यह अनमोल हीरा खनन किया गया था। कोहिनूर हीरे का इतिहास मुगल बादशाहों से लेकर ब्रिटिश ताज तक फैला हुआ है और इसे भारतीय उपमहाद्वीप की विरासत माना जाता है।

कोहिनूर का मुगल साम्राज्य में महत्व
कोहिनूर का पहला ऐतिहासिक रिकॉर्ड मुगल सम्राट शाहजहाँ के समय में मिलता है। जब गोलकुंडा के सुल्तान अब्दुल्ला कुतुब शाह के वजीर मीर जुमला ने इसे उन्हें उपहार स्वरूप दिया था। शाहजहाँ ने इस अनोखे हीरे को अपने प्रसिद्ध मयूर सिंहासन में जड़वाया था। जिसे बाद में ईरानी शासक नादिर शाह ने लूट लिया।
कोहिनूर का ब्रिटिश राज में प्रवेश
1739 में नादिर शाह द्वारा लूटे जाने के बाद कोहिनूर कई हाथों में गया और अंततः अफगानिस्तान के राजा शुजाशाह द्वारा पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह को सौंपा गया। महाराजा की मृत्यु के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने सिख साम्राज्य के साथ हुए समझौते के तहत इस हीरे को अपने अधिकार में ले लिया और इसे ब्रिटेन ले जाया गया। जहाँ यह आज भी ब्रिटिश राजकुमारी के ताज का हिस्सा है।
वर्तमान में कोहिनूर
आज कोहिनूर हीरा लंदन में टॉवर ऑफ लंदन में रखा गया है और यह ब्रिटिश रॉयल ज्वेल्स का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी कीमत करीब 1.67 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है, जो इसे दुनिया के सबसे महंगे हीरों में से एक बनाती है।