Tree disease: भारतीय कृषि और बागवानी में एक नया खतरा सामने आया है, जिसका नाम है गैनोडर्मा ल्यूसिडम. यह कवक जो छोटे और आकर्षक कत्थई काले रंग के मशरूम के रूप में नज़र आता है. पेड़ों की जड़ों में घुसपैठ कर उन्हें भीतर ही भीतर खोखला कर देता है. इस कवक की पहचान आमतौर पर उसकी विशेषताओं से की जाती है, जैसे कि उसका गहरा रंग और शेल्फ जैसा फलने वाला शरीर (Mushroom Identification).
प्रभावित क्षेत्र और पेड़-पौधे (Affected Areas and Plants)
इस कवक का प्रकोप मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप के गर्म और नम क्षेत्रों में देखा जाता है. जहाँ यह नारियल, सुपारी, चाय, बबूल, अल्बिज़िया, डालबर्गिया और ग्रेविया जैसे पेड़ों को नुकसान पहुंचाता है. ये पेड़ भारतीय कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इनका सूखना न केवल पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ता है बल्कि आर्थिक हानि भी पहुंचाता है (Crop Loss).
जड़ों पर असर (Root Impact)
गैनोडर्मा ल्यूसिडम कवक पेड़ों की जड़ प्रणाली को सीधे प्रभावित करता है. जिससे पेड़ों की आंतरिक संरचना कमजोर हो जाती है. इसका असर इतना विनाशकारी होता है कि पेड़ों की पत्तियां मुरझाने लगती हैं और उनमें फल-फूल नहीं आते हैं. पेड़ों का तना भी सड़ने लगता है. जिससे उनका आयु चक्र कम हो जाता है (Tree Decay).
प्रोफेसर डॉ. एस के सिंह की भूमिका (Role of Dr. S K Singh)
प्रोफेसर डॉ. एस के सिंह जो कि प्लांट पैथोलॉजी और नेमेटोलॉजी के विभाग में विभागाध्यक्ष हैं. प्रोफेसर डॉ. एस के सिंह ने इस कवक पर गहन शोध किया है. उनका कहना है कि अगर इस कवक का समय पर पता लगा लिया जाए और उचित प्रबंधन किया जाए तो पेड़ों को बचाया जा सकता है. उन्होंने कई तरह के प्रबंधन तकनीकों की सिफारिश की है, जैसे कि जैविक उपचार और रासायनिक उपचार (Management Techniques).
बचाव के उपाय (Prevention Measures)
गैनोडर्मा के प्रकोप से बचने के लिए प्रोफेसर डॉ. सिंह ने कुछ विशेष उपाय सुझाए हैं, जैसे कि पेड़ों की नियमित निगरानी, संक्रमित पेड़ों का प्रबंधन और नई तकनीकों का प्रयोग. उन्होंने रोग प्रतिरोधी प्रजातियों के उपयोग को भी महत्व दिया है. जिससे कि संक्रमण का खतरा कम हो सके (Disease Resistance).
भविष्य की दिशा (Future Directions)
आगे चलकर भारतीय कृषि विज्ञानियों और बागवानों को इस कवक के प्रभाव को समझने और उसे नियंत्रित करने के नए तरीके खोजने होंगे. इसके लिए अधिक से अधिक शोध और तकनीकी विकास पर जोर दिया जाना चाहिए ताकि पेड़-पौधों को इस घातक कवक से बचाया जा सके और भारतीय कृषि की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके (Research and Development).