उम्मुल खेर की कहानी उस संघर्ष से शुरू होती है। जब उनका परिवार राजस्थान के मारवाड़ से दिल्ली की ओर कूच कर गया। दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में बसी झुग्गियों में उनका बचपन गुजरा। उम्मुल के पिता कपड़े बेचने की रेहड़ी लगाते थे और इस तरह से परिवार का गुजारा चलता था। उम्मुल का बचपन न केवल आर्थिक तंगी में गुजरा बल्कि उन्हें हड्डियों की एक गंभीर बीमारी ने भी जकड़ रखा था।
शिक्षा की ओर बढ़ते कदम
उम्मुल ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पंडित दीनदयाल उपाध्याय संस्थान से प्राप्त की, जो शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए बनाया गया था। जबकि अन्य बच्चे खेल-कूद में समय बिताते थे। उम्मुल अपने स्वास्थ्य और शिक्षा की चुनौतियों का सामना कर रही थीं। इसके बावजूद उन्होंने अपने लिए एक बेहतर भविष्य की आशा को कभी नहीं छोड़ा।
परिवार से अलग होकर खुद की राह चुनी
निजामुद्दीन की झुग्गियां टूटने के बाद उम्मुल का परिवार त्रिलोकपुरी की झुग्गियों में बस गया। यहाँ उम्मुल ने अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट से अपनी शिक्षा जारी रखी। जब उनके परिवार ने उनकी आगे की पढ़ाई के लिए अनिच्छा जताई। तो उम्मुल ने अपने परिवार से बगावत कर दी और खुद की राह चुनी। उन्होंने खुद के खर्च के लिए ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और अपनी पढ़ाई जारी रखी।
उच्च शिक्षा और सफलता की ओर अग्रसर
उम्मुल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया। फिर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। जेएनयू से उन्हें जूनियर रिसर्च फेलोशिप मिली। जिसने उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार किया। यहीं से उन्होंने आईएएस बनने का अपना बचपन का सपना पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाया।
यूपीएससी की सफलता
उम्मुल ने जेएनयू से पीएचडी करने के बाद यूपीएससी की परीक्षा दी और अपने पहले प्रयास में ही सफलता हासिल की। उन्हें ऑल इंडिया रैंक 420 प्राप्त हुई। जिसके बाद उन्हें इंडियन रेवेन्यू सर्विस में डिप्टी कमिश्नर के पद पर नियुक्ति मिली।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रेरणा
उम्मुल ने अपने जीवन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से प्रेरणा ली। उनकी कहानी ने उम्मुल को यह सिखाया कि कैसे एक व्यक्ति ने अपनी मुश्किलों का सामना करते हुए अपनी राह बनाई। उम्मुल की यह यात्रा उसके अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प की गवाह है। जिसने उन्हें अपने सपनों को साकार करने में मदद की।