खेती की बढ़ती लागत और पर्यावरण पर हो रहे दुष्प्रभावों के मद्देनजर, मध्यप्रदेश सरकार ने “प्राकृतिक कृषि विकास योजना” की शुरुआत की है। यह योजना खेती की पारंपरिक तकनीकों को बदलकर एक सुधारात्मक पहल करती है। जिससे कि किसानों को कम लागत में गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पाद प्राप्त हो सकें।
केमिकल मुक्त खेती
इस योजना का मुख्य उद्देश्य है कि किसान उर्वरक, कीटनाशक, फफूंदनाशक और खरपतवार नाशक रसायनों का प्रयोग न करके अपनी फसलों का उत्पादन करें। इससे न केवल उत्पादन की लागत में कमी आएगी बल्कि फसलों की गुणवत्ता में भी इजाफा होगा। यह प्राकृतिक पद्धति मृदा स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी लाभदायक साबित होगी।
देशी गाय और प्राकृतिक खेती की महत्वपूर्ण भूमिका
इस योजना में देशी गाय का विशेष महत्व है। किसानों को गोबर और गौ-मूत्र से जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत, नीमास्त्र और पांच पत्ती काढ़ा जैसे प्राकृतिक उत्पाद बनाने की तकनीक सिखाई जा रही है। ये प्राकृतिक उत्पाद मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और फसलों के बेहतर उत्पादन में मदद करेंगे।
गोबर में छुपा पोषण
साहीवाल गाय जिसकी नस्ल भारतीय है। साहीवाल गाय के गोबर में असाधारण जीवाणु और पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसका गोबर मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है और प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक तत्व प्रदान करता है।
प्राकृतिक कृषि के लाभ
प्राकृतिक कृषि से न सिर्फ मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा होती है बल्कि मृदा स्वास्थ्य और पर्यावरण की भी रक्षा होती है। जैविक उत्पादों का उत्पादन कम लागत में होता है और उत्पादों का मूल्य भी अधिक मिलता है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
प्रशिक्षण और प्रोत्साहन
सरकार द्वारा प्राकृतिक कृषि के इच्छुक किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह प्रशिक्षण उन्हें नई खेती की तकनीकों से अवगत कराता है और प्राकृतिक कृषि प्रेरक के रूप में उनकी भूमिका को मजबूत करता है। किसानों को इस नई खेती की पद्धति में मास्टर ट्रेनर बनने का अवसर भी दिया जाता है। जिससे वे अपने समुदाय में ज्ञान का प्रसार कर सकें।