अनानास जिसे अग्रेजी में पाइनएप्पल कहा जाता है। अनानास न सिर्फ स्वास्थ्य वर्धक फल है बल्कि इसे खेती के लिहाज से भी काफी लाभकारी माना जाता है। यह फल विटामिन, मिनरल्स और फाइबर से भरपूर होता है और इसका उपयोग भूख बढ़ाने और पेट संबंधित दिक्कतों को खत्म करने में किया जाता है। बाजार में इसकी कीमत भी अच्छी बनी रहती है। जो इसे खेती के लिए और भी आकर्षक बनाती है।
अनानास की खेती की विशेषताएं
भारत में अनानास की खेती लगभग 92,000 हेक्टेयर में की जाती है। जिससे प्रति वर्ष लगभग 14.96 लाख टन उत्पादन होता है। अनानास की खेती की विशेषता यह है कि इसे साल में कई बार उगाया जा सकता है, जो इसे अन्य फसलों के मुकाबले ज्यादा लाभकारी बनाता है। मई से जुलाई के दौरान इसकी रोपाई की जाती है और इसका रखरखाव भी काफी आसान होता है।
खेती की तकनीकी और आवश्यक संसाधन
अनानास की खेती के लिए विशेष जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है और इसे कम पानी में भी उगाया जा सकता है। इसके पौधे को अन्य पौधों की तुलना में कम सिंचाई की जरूरत पड़ती है। फल की परिपक्वता में 18 से 20 महीने का समय लगता है और पकने पर इसका रंग लाल-पीला हो जाता है। तुड़ाई के बाद अनानास बाजार में बिकने के लिए तैयार होता है।
भारतीय राज्यों में अनानास की खेती
अनानास की खेती भारत के विभिन्न राज्यों में व्यापक रूप से की जाती है। इसकी खेती मुख्यतः आंध्र प्रदेश, केरल, त्रिपुरा, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, और असम में होती है। हाल ही में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और बिहार के किसान भी इस खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि इसमें मुनाफा अधिक होता है।
आर्थिक लाभ और मार्केटिंग
अनानास के पौधे एक बार में सिर्फ एक ही फसल देते हैं। इस तथ्य के बावजूद इसकी उच्च मांग के कारण बाजार में इसकी कीमत काफी अच्छी रहती है। अनानास का निर्यात भी भारत से विभिन्न देशों में किया जाता है। किसानों को प्रति हेक्टेयर लगभग 30 टन की उपज मिलने पर लाखों रुपये की कमाई हो सकती है, जो इस फसल को और भी वांछनीय बनाती है।
अनानास की खेती न केवल आर्थिक लाभ प्रदान करती है बल्कि यह किसानों को अन्य फसलों की तुलना में कम प्रयास में अधिक रिटर्न देने का विकल्प भी प्रदान करती है। इसकी बढ़ती हुई मांग और अच्छे बाजार मूल्य के कारण, अनानास की खेती भारतीय कृषि जगत में एक प्रमुख स्थान रखती है।