Fertility Rate In India: भारत अब दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, 10 नवंबर 2024 तक भारत की जनसंख्या 1,455,591,095 हो गई है। यह आंकड़ा दिखाता है कि भारत ने पिछले कुछ सालों में जनसंख्या वृद्धि के नए रिकॉर्ड बनाए हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में लगातार गिरावट आ रही है।
फर्टिलिटी रेट में गिरावट: 1950 से अब तक
1950 में भारत की औसत प्रजनन दर 6.2 थी। यह 2021 में घटकर 2% पर आ गई। हेल्थ एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि यदि यही ट्रेंड जारी रहा, तो 2050 तक फर्टिलिटी रेट घटकर 1.3 हो सकती है। इस रफ्तार से, भारत की जनसंख्या 2054 तक 1.69 अरब पर पहुंचेगी और 2100 तक यह 1.5 अरब रह जाएगी।
भारत में क्यों घट रही है फर्टिलिटी रेट?
- देर से शादियां
आजकल लोग करियर बनाने में अधिक समय लगाते हैं। इसके चलते शादी की उम्र बढ़ रही है। शादी में देरी का सीधा असर बच्चों के जन्म पर पड़ता है। - लेट फैमिली प्लानिंग
आज की युवा पीढ़ी परिवार प्लानिंग में देरी कर रही है। पहले के समय में 20-25 साल की उम्र में महिलाएं मां बन जाती थीं। अब यह औसत उम्र 30 साल तक हो गई है। - बदलती प्राथमिकताएं
आधुनिक जीवनशैली में बड़े परिवार की धारणा बदल गई है। लोग कम बच्चे पैदा करने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
घटती फर्टिलिटी रेट से होने वाले नुकसान
- लेबर फोर्स में कमी
कम प्रजनन दर का मतलब है कम बच्चे। इससे भविष्य में काम करने वाले लोगों की संख्या कम हो जाएगी। इससे देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। - अधिक बुजुर्ग आबादी
बच्चों की संख्या कम होने से समाज में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ेगा। इससे पेंशन सिस्टम और स्वास्थ्य सुविधाओं पर दबाव बढ़ेगा। - आर्थिक असंतुलन
ज्यादा बुजुर्गों और कम कामकाजी उम्र के लोगों की वजह से आर्थिक असंतुलन पैदा हो सकता है।
फर्टिलिटी रेट घटने के फायदे
- महिलाओं की औसत उम्र में इजाफा
एक स्टडी के अनुसार, जो महिलाएं कम बच्चे पैदा करती हैं, वे अधिक जीती हैं। प्रजनन दर में गिरावट से महिलाओं की सेहत बेहतर रहती है। - जनसंख्या नियंत्रण
फर्टिलिटी रेट कम होने से आबादी नियंत्रित होती है। इससे प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकता है। - बेहतर जीवनस्तर
कम बच्चों के कारण परिवारों का ध्यान शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक हो सकता है।
भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को घटती फर्टिलिटी रेट से जुड़े खतरों और फायदों पर संतुलित नीति बनानी चाहिए। बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, पेंशन प्रणाली, और कामकाजी उम्र के लोगों को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों पर ध्यान देना जरूरी है।