Nike के जूते विश्वभर में लोकप्रिय हैं और उनकी कीमतें अक्सर लोगों को चौंका देती हैं. सवाल यह उठता है कि आखिर इन जूतों की कीमतें इतनी अधिक क्यों होती हैं? असल में एक जोड़ी Nike (expensive nike shoes) जूते बनाने में कई अलग-अलग फैक्टर जुड़ते हैं. जो इसकी रिटेल कीमत को बढ़ाते हैं.
प्रोडक्शन में आते हैं कई महत्वपूर्ण खर्च
Nike के जूते बनाने की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण चीजें शामिल होती हैं. जिनमें मैटेरियल कॉस्ट, लेबर कॉस्ट और मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस का खर्च (production cost of nike shoes) शामिल है. ये सारे खर्चे मिलकर जूतों की कुल लागत तय करते हैं. जिसमें से कंपनी को प्रॉफिट भी सुनिश्चित करना होता है.
मैटेरियल कॉस्ट
Nike जूतों में हाई क्वालिटी वाले मैटेरियल का उपयोग होता है. इनमें रबड़, फोम और टेक्सटाइल्स जैसे हाई क्वालिटी वाले सामान का इस्तेमाल (high quality materials in nike shoes) होता है, जो जूतों को टिकाऊ और आरामदायक बनाता है.
असेंबलिंग में आता है ज्यादा खर्च
Nike जूते बनाने की प्रक्रिया में असेंबलिंग एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. जिसमें लेबर कॉस्ट भी शामिल होती है. इसमें हर एक जूते को हाथों से असेंबल किया जाता है. जिससे उनकी क्वालिटी बरकरार रहती है. एक जोड़ी Nike (assembly cost in nike shoes) जूते की असेंबलिंग पर करीब 15-20 डॉलर का खर्च आता है.
मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग
Nike की मार्केटिंग रणनीतियों में बड़े-बड़े सेलेब्रिटी और इवेंट्स शामिल होते हैं, जैसे कि लेब्रोन जेम्स और क्रिस्टियानो रोनाल्डो का एंडोर्समेंट. ये मार्केटिंग कैंपेन (nike celebrity endorsement) कंपनी के ब्रांड को बढ़ावा देते हैं. लेकिन इसका खर्च भी जूतों की कीमत में जुड़ता है.
सेलिंग और डिस्ट्रीब्यूशन कॉस्ट
Nike अपने प्रोडक्ट्स को ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए एक मजबूत डिस्ट्रीब्यूशन चैनल का उपयोग करती है. इसमें ट्रांसपोर्टेशन और स्टोर रखरखाव का खर्च (nike distribution cost) भी शामिल है. इससे कंपनी को अपने जूते विश्वभर में आसानी से उपलब्ध कराने में मदद मिलती है.
1 जोड़ी जूते की प्रोडक्शन लागत
एक रिपोर्ट के अनुसार Nike के एक जोड़ी जूते बनाने में लगभग 30-50 डॉलर का खर्च आता है. भारतीय करेंसी में देखा जाए तो ये कीमत लगभग 2500-4200 रुपए तक होती है. यह लागत (nike shoe cost in india) हर मॉडल और कलेक्शन के अनुसार बदल सकती है. लेकिन यह लागत रिटेल कीमत से काफी कम होती है.
रिटेल कीमत में कैसे होता है बदलाव
Nike की रिटेल कीमत में कंपनी अपने लाभ को जोड़ती है और इस तरह यह कीमत (retail cost of nike shoes) बढ़ जाती है. इससे कंपनी को प्रोडक्शन कॉस्ट से ज्यादा कमाई होती है. लेकिन ग्राहक को हाई क्वालिटी और ब्रांड वैल्यू भी मिलती है.
सेलेब्रिटी एंडोर्समेंट और ब्रांड इमेज
Nike के सेलेब्रिटी एंडोर्समेंट्स कंपनी की ब्रांड इमेज को बढ़ाते हैं. बड़े सेलेब्रिटी की मौजूदगी (nike brand image) न केवल जूतों की ब्रांड वैल्यू बढ़ाती है बल्कि ग्राहकों को जूतों की ओर आकर्षित भी करती है.
कस्टमर लॉयल्टी और रीसेल वैल्यू
Nike की मजबूत ब्रांड इमेज और हाई क्वालिटी की वजह से ग्राहकों में ब्रांड के प्रति गहरी विश्वास होती है. इसके अलावा Nike जूतों की रीसेल वैल्यू (nike shoes resale value) भी काफी अच्छी रहती है, जो ग्राहकों के लिए एक अतिरिक्त प्रोत्साहन है.
कस्टमाइजेशन और लिमिटेड एडिशन
Nike ने कस्टमाइजेशन और लिमिटेड एडिशन प्रोडक्ट्स में भी कदम रखा है. ये जूते ग्राहकों को एक यूनिक प्रोडक्ट देने का वादा करते हैं. जिससे उनकी कीमत बढ़ जाती है. लिमिटेड एडिशन (limited edition nike shoes) होने के कारण ये जूते ग्राहकों के बीच और भी ज्यादा आकर्षण का केंद्र बनते हैं.