Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण समय माना जाता है. यह पीरियड हर वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. इस दौरान हिन्दू धर्मावलंबी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं और तर्पण (ancestor worship) अर्पित करते हैं.
श्राद्ध कर्म की प्रक्रिया और उसके नियम
पितृ पक्ष के दौरान अनुष्ठान में पवित्रता और संयम बरतना अनिवार्य होता है. श्राद्ध कर्म के समय कोई भी शुभ कार्य जैसे कि नई चीजों की खरीदारी (avoid new purchases) या नए उद्यम की शुरुआत करना वर्जित माना जाता है. इस पीरियड में तामसिक भोजन, अल्कोहल और धूम्रपान से परहेज करना चाहिए. ताकि पितरों को समर्पित अनुष्ठान में किसी भी प्रकार की अशुद्धियां न आए.
पितृ पक्ष के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां
श्राद्ध कर्म के दौरान व्यक्ति को अपनी शारीरिक शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए. नाखून नहीं काटने (no nail cutting) और बाल नहीं कटवाने का नियम इसी उद्देश्य से होता है. माना जाता है कि ये गतिविधियां शारीरिक और आत्मिक शुद्धता को प्रभावित कर सकती हैं, जो कि श्राद्ध कर्म के लिए अनुपयुक्त है.
पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध
इस पवित्र अवधि में यह विश्वास किया जाता है कि पितरों की आत्माएं धरती पर आती हैं और अपने वंशजों से कनेक्शन (ancestral blessings) बनाने की कोशिश करती हैं. इस दौरान किसी भी पशु, पक्षी या व्यक्ति का आगमन यदि द्वार पर हो, तो उसे सम्मान के साथ ट्रीट करना चाहिए. इससे माना जाता है कि वंशज पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
श्राद्ध कर्म के सही समय और परंपराएँ
श्राद्ध कर्म सदैव दिन के समय किया जाना चाहिए. खासकर मध्याह्न के आसपास जब सूर्य अपने चरम पर होता है. इसे शाम, रात या अंधेरे के समय में करने से बचना चाहिए. क्योंकि ऐसे समय को श्राद्ध कर्म के लिए अशुभ (inauspicious times) माना जाता है.