पति अगर पत्नी को साथ नही रखना चाहे तो क्या है कानून, जाने पूरी डिटेल

By Vikash Beniwal

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Marriage Act

Marriage Act: कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब एक पति बिना किसी कारण अपनी पत्नी को घर से बाहर निकाल देता है. ऐसी स्थिति में महिला के लिए यह एक गंभीर समस्या बन जाती है. खासकर अगर वह कामकाजी नहीं है. इस स्थिति में महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों (legal rights of women) की ओर रुख करती हैं. भारतीय कानून ने महिलाओं को कई अधिकार दिए हैं, जो एक पत्नी के रूप में उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं.

धारा 498(ए) भारतीय दंड संहिता – क्रूरता के विरुद्ध अधिकार

भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए) महिलाओं को उनके पति या ससुरालवालों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के खिलाफ अधिकार देती है. अगर किसी महिला के साथ मानसिक या शारीरिक क्रूरता (physical or mental cruelty) की जाती है, तो वह इस धारा के तहत शिकायत दर्ज कर सकती है. क्रूरता में मारपीट, गाली-गलौच, दहेज की मांग या किसी भी तरह का मानसिक उत्पीड़न शामिल है. पुलिस थाने में जाकर FIR दर्ज करवाई जा सकती है.

धारा 154 सीआरपीसी के तहत एफआईआर दर्ज करवा सकती है

धारा 154 दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) के अंतर्गत किसी महिला को अपने पति के खिलाफ FIR दर्ज करवाने का अधिकार है. इसके लिए जरूरी नहीं है कि महिला उसी थाने में शिकायत दर्ज करे जहां उसका पति रहता है. वह अपने मायके से या किसी अन्य जिले से भी शिकायत दर्ज कर सकती है.

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा-9 – पुनः घर में प्रवेश के लिए याचिका

अगर किसी महिला को उसके पति ने बिना कारण घर से निकाल दिया है, तो हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-9 के तहत महिला अदालत में याचिका दाखिल कर सकती है. इस धारा के अंतर्गत अदालत पति को आदेश देती है कि वह अपनी पत्नी को घर वापस ले जाए और उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करे. यह कानून महिलाओं को उनके अधिकार (conjugal rights of women) के प्रति सशक्त करता है.

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 – महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा

घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए लागू किया गया है. इस कानून के तहत यदि किसी महिला को उसके पति द्वारा घर से निकाला गया है, तो वह अदालत से अपने घर में पुनः प्रवेश (re-entry in house) की मांग कर सकती है. इसके अलावा, स्त्रीधन (Stridhan) और मेंटेनेंस (maintenance for wife) की भी मांग कर सकती है.

भरण पोषण के लिए धारा 144 सीआरपीसी का उपयोग

अगर पति ने पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया है और वह आर्थिक रूप से असहाय है, तो पत्नी भरण पोषण (maintenance from husband) के लिए अदालत में अर्जी दाखिल कर सकती है. धारा 144 सीआरपीसी के अंतर्गत अदालत पति को आदेश देती है कि वह अपनी पत्नी को मासिक भरण पोषण दे, जो उसकी जीवन शैली और पति की आय पर निर्भर करता है.

अदालत का भरण पोषण आदेश

अदालत साधारणत: ₹3000 से ₹5000 प्रतिमाह के भरण पोषण का आदेश (monthly maintenance order) करती है. लेकिन महिला की स्थिति और पति की आय के आधार पर यह राशि बढ़ भी सकती है. अगर पति भरण पोषण देने से इनकार करता है, तो महिला अदालत के माध्यम से वसूली कर सकती है और पति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करवाने का अधिकार भी रखती है.

सभी धर्मों के लिए समान अधिकार

भारतीय कानून में महिलाओं को दिए गए अधिकतर अधिकार सभी धर्मों के लिए समान हैं. हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-9 सिर्फ हिंदू महिलाओं पर लागू होती है. जबकि अन्य समुदायों जैसे मुस्लिम और ईसाई महिलाओं के लिए भी उनके धर्म के अनुसार समान अधिकार (rights for Christian and Muslim women) हैं. सभी महिलाओं के पास अपने पति से पुनः घर में प्रवेश और मेंटेनेंस की मांग का अधिकार है.

Vikash Beniwal

मेरा नाम विकास बैनीवाल है और मैं हरियाणा के सिरसा जिले का रहने वाला हूँ. मैं पिछले 4 सालों से डिजिटल मीडिया पर राइटर के तौर पर काम कर रहा हूं. मुझे लोकल खबरें और ट्रेंडिंग खबरों को लिखने का अच्छा अनुभव है. अपने अनुभव और ज्ञान के चलते मैं सभी बीट पर लेखन कार्य कर सकता हूँ.