जाने ट्रेन के ड्राइवर को क्यों दिया जाता है ये लोहे का छल्ला, आख़िर किस काम में होता है ये इस्तेमाल
टोकन एक्सचेंज सिस्टम ब्रिटिश काल में बनाई गई एक तकनीक है। जो ट्रेन के सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करता है। बता दें कि आज के जैसे पहले ट्रैक सर्किट नहीं होते थे। ऐसे में इस टोकन एक्सचेंज सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता था। ताकि कोई एक ट्रेन दूसरी ट्रेन से न टकराए। गौरतलब है कि पहले रेलवे में सिर्फ छोटी और सिंगल लाइन हुआ करती थी। इस वजह से दोनों तरफ की ट्रेनें एक ही लाइन पर चलाई जाती थीं। अगर टोकन एक्सचेंज जैसी व्यवस्था नहीं होती तो ट्रेनें आपस में टकराती रहतीं।
किस तरह काम करता है टोकन एक्सचेंज सिस्टम
इसी चीज से बचने के लिए अंग्रेजों ने टोकन एक्सचेंज सिस्टम को बनाया था। टोकन एक प्रकार का लोहे का छल्ला होता है। जिसके बीच में लोहे का एक गोला रखा जाता है। इस टोकन को स्टेशन मास्टर, लोको पायलट को देता है। लोको पायलट के पास जैसे ही ये टोकन आता है। इसका मतलब है कि अगले स्टेशन तक लाइन क्लियर है। आप आगे बढ़ सकते हैं। अगले स्टेशन पर पहुंचने के बाद लोको पायलट को पहले वाला टोकन वहां जमा करना होता है और दूसरा टोकन लेकर वो आगे बढ़ता है।
स्टेशन पर लगाई जाती है नेल मशीन
टोकन में लगे लोहे के बॉल को स्टेशन पर लगे नेल बॉल मशीन में डाल दिया जाता है। प्रत्येक स्टेशन पर नेल बॉल मशीन लगाई जाती है और ये एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक जुड़ा रहता है। जैसे से स्टेशन मास्टर लोको पायलट से लिए हुए बॉल को नेल बॉल मशीन में डालता है। अगले स्टेशन के लिए रूट को क्लियर घोषित कर दिया जाता है।
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मान लिजिए अगर ट्रेन बीच में ही किसी कारण से रूक गई या खराब हो गई तो इस स्थिती में टोकन अगर स्टेशन तक नहीं पहुंच पाता है। यदि टोकन अगले स्टेशन तक नहीं पहुंचता है।तो पिछले स्टेशन की नेल बॉल मशीन अनलॉक नहीं होगी। इस स्थिति में स्टेशन मास्टर किसी भी ट्रेन को आगे जाने की अनुमती नहीं देता है।
लोहे का छल्ला आता है इस काम
कई बार लोको पायलट चलती ट्रेन से ही इस टोकन का आदान-प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी ट्रेन का किसी स्टेशन पर ठहराव नहीं है तो स्टेशन मास्टर चलती ट्रेन में ही लोको पायलट को टोकन देता है। ऐसी स्थिती में लोहे का छल्ला बड़ा काम आता है।
इसकी मदद से लोको पायलट चलती ट्रेन में आसानी से टोकन एक्सचेंज कर पाता है। हालांकि रेलवे अब तेजी से आधुनिक हो रहा है और इस टोकन एक्सचेज सिस्टम की जगह अब ज्यादातर ट्रैक सर्किट का इस्तेमाल किया जाता है।