1 जून 1930 को ब्रिटिश शासन के दौरान डेक्कन क्वीन ट्रेन की शुरुआत हुई। जो भारत की पहली सुपरफास्ट और लग्जरी ट्रेन के रूप में पहचानी जाती है। यह ट्रेन मुंबई से पुणे के बीच चलाई गई थी और इसे विशेष रूप से अंग्रेज अफसरों की सुविधा के लिए डिज़ाइन किया गया था। डेक्कन क्वीन की शुरुआत उस समय की एक बड़ी घटना थी। क्योंकि इसने भारत में रेल यात्रा की दिशा और स्वरूप को ही बदल दिया।
अनूठी डिज़ाइन और सुविधाएँ
डेक्कन क्वीन की सबसे खास बात इसकी डिज़ाइन थी। इस ट्रेन के कोच की छत कांच से निर्मित थी। जिससे यात्रियों को खुले आसमान के नीचे यात्रा करने का एहसास होता था। इसके अलावा ट्रेन में घूमने वाली कुर्सियाँ भी लगी थीं। जो यात्रियों को आरामदायक और विशेष अनुभव प्रदान करती थीं। इन विशेषताओं ने डेक्कन क्वीन को न केवल एक ट्रेन बना दिया था। बल्कि एक यात्रा के अद्भुत अनुभव में बदल दिया था।
ऐतिहासिक महत्व और विकास
डेक्कन क्वीन का इतिहास बहुत ही रोचक है। यह ट्रेन भारत में पहली बार इलेक्ट्रिक इंजन के साथ चलाई गई थी और इसमें पहली बार फर्स्ट और सेकंड क्लास में चेयर कारों की शुरुआत की गई थी। इस ट्रेन को खास तौर पर ब्रिटिश अफसरों के लिए बनाया गया था और शुरुआत में इसमें केवल अंग्रेजों को ही यात्रा करने की अनुमति थी।
भारतीयों के लिए खुली ट्रेन की सवारी
शुरुआती वर्षों में इस ट्रेन में सिर्फ अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों और व्यवसायियों को ही सफर करने की इजाजत थी। हालांकि 1943 में जब इस ट्रेन की लोकप्रियता में कमी आई, तो भारतीय नागरिकों के लिए भी इसे खोल दिया गया। यह निर्णय भारतीय रेलवे के लिए मुनाफा कमाने के नजरिए से काफी सार्थक साबित हुआ। इस बदलाव के बाद डेक्कन क्वीन हफ्ते में एक बार से बढ़कर दैनिक ट्रेन बन गई और पहली बार महिलाओं के लिए भी अलग कोच लगाया गया।
आज भी बरकरार है डेक्कन क्वीन का जादू
डेक्कन क्वीन आज भी भारतीय रेलवे की शान है और यात्रियों के बीच इसकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है। इस ट्रेन की यात्रा न केवल एक सफर है बल्कि एक यादगार अनुभव है, जो यात्रियों को भारतीय रेलवे के समृद्ध इतिहास और विरासत से जोड़ता है। यह ट्रेन न केवल अपनी गति और सुविधाओं के लिए प्रसिद्ध है। बल्कि यह भारतीय रेलवे की प्रगति और नई तकनीक की गाथा को भी दर्शाती है।