Indian Railway: भारतीय रेलवे जो दुनिया का चौथा सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क (rail network) है की स्थापना की गई थी साल 1853 में. इस दौरान पहली बार ट्रेन की सवारी ने भारतीय परिवहन के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा. यह वह समय था जब भारतीय रेल ने अपनी पहली यात्रा मुंबई से ठाणे के बीच की थी जिसने देश में यात्रा और माल परिवहन की दिशा ही बदल दी.
एसी कोच की शुरुआत
वर्षों के दौरान भारतीय रेलवे ने अपनी सुविधाओं में कई बदलाव किए हैं जिसमें एसी कोच (AC coach facilities) की शुरुआत भी शामिल है. इन एसी कोच को जोड़ने का मुख्य उद्देश्य यात्रियों को अधिक सुविधा और आराम देना था. इन कोचों की शुरुआत के साथ ही ट्रेनों में यात्रा करने का अनुभव और भी बेहतर हो गया.
एसी कोच को क्यों रखा जाता है बीच में?
यह एक रोचक तथ्य है कि एसी कोच आमतौर पर ट्रेन के बीच में ही रखे जाते हैं. इसकी मुख्य वजह यह है कि अधिकतर रेलवे स्टेशनों पर प्रवेश द्वार (station entrances) भी मध्य में होते हैं. इस व्यवस्था के चलते यात्रियों को अपने एसी कोच तक पहुँचने में आसानी होती है और इससे उन्हें अधिक सुविधा मिलती है.
एसी कोच के किराये में अंतर
जाहिर है कि एसी कोच में यात्रा करने के लिए रेलवे की ओर से अधिक किराया (higher fares) वसूला जाता है. यह किराया नॉन-एसी कोच की तुलना में अधिक होता है क्योंकि ये कोच अधिक आरामदायक और सुविधाजनक होते हैं. इससे रेलवे को भी अधिक आय होती है और यात्रियों को बेहतर सेवाएँ प्रदान की जा सकती हैं.
ब्रिटिश काल से चली आ रही व्यवस्था
भारतीय रेलवे में एसी कोच को बीच में रखने की प्रथा ब्रिटिश शासन (British rule) के समय से ही चली आ रही है. पहले इन्हें इंजन के तुरंत बाद लगाया जाता था लेकिन इंजन के शोर (engine noise) के कारण यात्रियों को असुविधा होती थी. इसलिए बाद में इन्हें बीच में स्थानांतरित कर दिया गया ताकि यात्रियों को इंजन के शोर से कम से कम असुविधा हो.